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काली माता के मंत्र - Kali Mantra

माँ काली महाकाली भद्रकाली का संपूर्ण मंत्र
महाकाली मंत्र का जाप माँ काली की स्तुति और उनकी वंदना के लिए किया जाता है। माँ काली के मंत्र जाप से भक्तों का जीवन कल्याणमय हो जाता है और उन्हें माँ काली के आशीर्वाद से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। शास्त्रों में कहा गया है मंत्र के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को तार सकता है। मंत्र जाप के द्वारा व्यक्ति ईश्वर से वह फल प्राप्त कर सकता है, जिस फल की वह कामना करता है। इस मंत्र में दैवीय उर्जा को जगाने व उसका संकलन करने की शक्ति प्रदान होती है। माँ काली की विशेष रूप से बंगाल और असम में पूजा होती है। इस लेख में माँ काली से जुड़े मंत्रों के बारे में जानेंगे। साथ ही हम ये भी जानेंगे कि माँ काली के कौन-कौन से मंत्र हैं और उन मंत्रों को जपने की सही विधि क्या तथा उन मंत्रों के लाभ क्या हैं। लेकिन इससे पहले हमें माँ काली के स्वरूप या उनके बारे में जानने की आवश्यकता है।
माँ काली - ऐसे हुई थी माँ की उत्पत्ति
माता काली, माँ दुर्गा का ही विकराल रूप है। दुष्टों के संहार के लिए माँ दुर्गा ने काली रुप धरा है। यहाँ काली शब्द संस्कृत के ‘काल’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है समय। पौराणिक कथा के अनुसार, लिंग पुराण में माँ काली की उत्पत्ति का वर्णन कुछ इस प्रकार है- दारुक नामक एक राक्षस ब्रह्मा जी का आशीर्वाद पाकर देवों और ब्राह्मणों को सताने लगा। उसने सभी धार्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया। ब्रह्मा जी के मुताबिक वह राक्षस केवल एक स्त्री के हाथों ही मारा जा सकता है।
ऐसे में ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया। भगवान शिव ने उनकी बात सुनकर मां पार्वती की ओर देखा और उनसे उस राक्षस का वध करने की विनती की। यह सुन मां पार्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश कराया। माँ भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा।
विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ। भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला। उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली उत्पन्न हुई और फिर उन्होंने उस राक्षस का वध किया।

माँ काली मंत्र
माँ काली की स्तुति के लिए कई मंत्र हैं। जहां अन्य देवी-देवताओं के दो-चार और कुछ के दर्जनों मंत्र हैं, कहीं माँ काली के सौ से भी अधिक विशिष्ट मंत्र हैं। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। जिस प्रकार माता काली के स्वरूप और शक्तियां सभी देवताओं से अधिक हैं, ठीक उसी प्रकार सबसे अधिक है माँ काली के मंत्र भी। यहाँ माता काली के शीग्र फलदायक और प्रबल शक्तिशाली मंत्रों तथा अनेक विभिन्न रूपों के भी मंत्रों का संकलन सभी मंत्रों में, ‘क्रीं, हूं, हीं और स्वाहा’ शब्दों का प्रयोग होता है।

एकाक्षर मंत्र - क्रीं
यह महाकाली का एकाक्षरी मंत्र है। मां काली का यह बेहद शक्तिशाली मंत्र है इसलिए शास्त्रों में इसे महामंत्र की संज्ञा दी गई है। इसे मातेश्वरी काली का ‘प्रणव’ कहा जाता है और इसका जप उनके सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। वैसे इसे चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहते हैं।

द्विअक्षर मंत्र – क्रीं क्रीं
इस मंत्र का भी स्वतंत्र रूप से जप किया जाता है, लेकिन तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु बड़ी संख्या में किसी भी मंत्र का जप करने के पहले और बाद में सात-सात बार इन दोनों बीज मंत्र को जपने का विधान है।

त्रिअक्षरी मंत्र – क्रीं क्रीं क्रीं
यह काली की तांत्रिक साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मंत्र है। द्विअक्षर मंत्र के समान ही इन दोनों में से किसी एक को मंत्र सिद्धि अथवा मंत्रों का बड़ी संख्या में जप करते समय अनेक तांत्रिक अथवा साधक प्रारंभ और अंत में सात-सात बार इसका जाप करते हैं।

सर्वश्रेष्ठ मंत्र – क्रीं स्वाहा
महामंत्र ‘क्रीं’ में ‘स्वाहा’ से संयुक्त यह मंत्र उपासना अथवा आराधना के अंत में जपने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

ज्ञान प्रदाता मंत्र : ह्रीं
यह भी एकाक्षर मंत्र है। माँ काली की आराधना अथवा उपासना करने के पश्चात इस मंत्र के नियमित जप से साधक को संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मंत्र कहा जाता है।

चेटक मंत्र
उपरोत्त्क सभी मंत्रों का विशेष प्रयोजनों के लिए विशिष्ट संख्या में किया जा सकता है। वैसे सभी कामनाओं की पूर्ति, हर प्रकार के कष्टों के निवारण और माँ की विशेष अनुकम्पा के लिए चेटक मंत्रों को उनके साथ वर्णित संख्या में जपा जाता है। छह से इक्कीस अक्षरों तक के ये मंत्र निम्नलिखित हैं -

पंचाक्षरी मंत्र - क्रीं क्रीं क्री स्वाहा
पांच अक्षर के इस मंत्र के प्रणेता स्वयं जगतपिता ब्रह्मा जी हैं। यह सभी दुखों का निवारण करके धन – धान्य बढ़ता है।

क्रीं क्रीं फट स्वाहा
छह अक्षरों का यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है। सम्मोहन आदि तांत्रिक सिंद्धियों के लिए इस मंत्र का विशेष रूप से जप किया जाता है।

क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में समर्थ है। आठ अक्षरों का यह मंत्र। उपासना के अंत में इस मंत्र का जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा
ग्यारह अक्षरों का यह मंत्र अत्यंत दुर्लभ और सर्वसिंद्धियों को प्रदान करने वाला है। उपरोत्त्क पांच, छह, आठ और ग्यारह अक्षरों के इन मंत्रों को दो लाख की संख्या में जपने का विधान है। तभी यह मंत्र सिद्ध होता है।

नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
नमः आं आं क्रों क्रों फट स्वाहा कालिका हूं।
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।

माँ काली के ये पांच मंत्र समान रूप से प्रभावशाली हैं। इनमें से प्रत्येक का एक लाख की संख्या में जपकर सिद्ध करने का विधान है।

महाकाली शाबर मंत्र
शाबर मंत्र के प्रयोग से महाकाली शीघ्र प्रसन्न होती है। महाकाली के इस मंत्र को केवल ग्रहण के दिन जपना चाहिए। आप किसी भी मनोकामना पूर्ती हेतु इस शाबर मंत्र को सिद्ध कर सकते है। मंत्र इस प्रकार है : –
“ॐ काली घाटे काली माँ
पतित पावनी काली माँ
जवा फूले
स्थुरी जले
सेई जवा फूल में सीआ बेड़ाए
देवीर अनुर्बले
एहि होत करिवजा होइवे
ताही काली धर्मेर
वले काहार आज्ञे राठे
काली का चंडीर आसे”

शाबर मंत्र को जपने की विधि
पहले स्नान करके पूर्व दिशा की तरफ आसन बिछाकर बैठ जाएं।
एक घी का दीपक जलाए और हाथ में थोडा जल लेकर संकल्प ले।
संकल्प लेने के पश्चात् मंत्र जप शुरू करें
मंत्र जाप 108 या 1008 बार करें।
अब आप फिर से हाथ में थोड़ा जल लेकर संकल्प लें
अपने आसन को थोडा मोड़कर खड़े हो जाएं।
मंत्र जप के तुरंत बाद जो कपड़े आपने पहने हुए है, उनको पहने हुए ही स्नान करें।
इस प्रकार से यह मंत्र जप ठीक चन्द्र ग्रहण शुरू होने से लेकर चन्द्र ग्रहण पूर्ण होने तक चलते रहने चाहिए।
इस प्रकार से इस अवधि में मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध होते है।