Welcome to Shree Shanidham Trust

मृत संजीवन जप विधि

भगवान शिव को महामृत्युंजय भी कहा गया है। मृत संजीवन जप विधि से हर प्रकार की आधि-व्याधियों का शमन होता है। भगवान महामृत्युंजय यश और शारीरिक शक्ति की वृद्धि करने वाले हैं। उनकी अनुकंपा से हर प्रकार की प्रतिकूलताओं का शमन हो जाता है। शास्त्रोक्त विधि से मृत संजीवन जप का फल तुरंत प्राप्त हो जाता है।
जपकर्ता आचमनं प्राणायामञ्च कृत्वां।
जपकर्ता आचमन व प्राणायाम कर गणपति आदि निम्न देवताओं को प्रणाम कर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, फल व दक्षिणा-द्रव्य लेकर संकल्प करें।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नम:। ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:। ॐ उमामहेश्वाराभ्यां नम:। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:। 
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नम:।  ॐ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नम:। 
ॐ इष्टदेवताभ्यो नम:। ॐ कुलदेवताभ्यो नम:। ॐ ग्रामदेवताभ्यो नम:। ॐ वास्तुदेवताभ्यो नम:। ॐ सर्वेभ्योग्रहेभ्यो नम:। 
ॐ सवेभ्यो शक्तिभ्यो नम:। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। 
ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:। ॐ एतत् कर्म देवताश्री महा मृत्युञ्जयाय नम:। 
इति देवानां स्मरणं नमस्कारं च कृत्वा संकल्पं कुर्यात्।।
प्रधान संकल्प -
ॐ  विष्णर्विष्णुर्विष्णु:। श्रीमद् भगवतोविष्णोराज्ञयाप्र- वर्तमानस्य- ब्रह्मणोह्निद्वितीयेपराद्र्धे वैवस्वतमन्वन्तरे- अष्टाविंशतितमेकलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बू द्वीपे भरत खण्डे भारत वर्षे आर्यावतन्तिर्गत कुमारिका क्षेत्रे गंगा यमुनयो: अमुक तटे अमुक नाम्नि नगरे/ग्रामे अमुकनाम्नि विक्रमसंवत्सरे अमुक अयनेसूर्ये अमुकऋतौ अमुक मासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ यथा यथा राशिस्थितेषु ग्रहेषु एवं गुण विशेषेण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ मम (यजमानस्य वा) आत्मन: श्रुति स्मृति पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्ति पूर्वक शरीरे सञ्जातानां तापाद्यखिल महारोगाणामुपशमनार्थं सर्वारिष्टशान्त्यर्थञ्च षट् प्रणव संयुक्तस्य श्री महामृत्युञ्जय (मृतसञ्जीवन) मन्त्रस्य अमुक संख्याकं जप (ब्राह्मण द्वारा) वा अहं करिष्ये।।
विनियोग -
पुनर्जलं गृहीत्वा
(पुन: हाथ में जल लेकर संकल्प सहित विनियोग करें।)
संकल्पं कृत्वा
अस्य श्री मृत्युञ्जय मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषि:। श्री मृत्युञ्जयरुद्रो देवता। अनुष्टुप्छन्द:। हौं बीजम्। जूं शक्ति:। स: कीलकम्। श्री मृत्युञ्जय प्रीतये मम (यजमानस्य वा) अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:।।
ऋष्यादि न्यास:
वसिष्ठ ऋषये नम: शिरसि।
अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे।
श्री मृत्युञ्जय रुद्रदेवतायै नमो हृदये।
हौं बीजाय नमो गुह्ये।
जूं शूलये नम: पादयो:।
स: कीलकाय नम: सर्वाङ्गेषु।।
करादि न्यास:
ॐ त्र्यम्बकं अङ्गुष्ठाभ्यां नम:।
ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नभ:।
ॐ सुगन्धि पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां नम:।
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नम:।
ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ॐ मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।
हृदयादि न्यास:
ॐ त्र्यम्बकं हृदयाय नम:।
ॐ यजामहे शिरसे स्वाहा।
ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वषट्।
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् कवचाय हुम्।
ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्र त्रयाय वौषट्।
ॐ मामृतात् अय फट्।।
ध्यानम्
चन्द्रोद्भासित मूर्धजं सुरपतिं पीयूषपात्रं दधत्,
हस्ताब्जेन दधत्सुदिव्यममलं हास्यास्य पङ्केरूहम्।
सूर्येन्द्वग्नि विलोचनं करतलै, पाशाक्ष सूत्राङ्कुशाम्,
भोजं बिभ्रतमक्षयं पशुपतिं मुत्युञ्जयं संस्मरे।।
चन्द्रमा के समान उज्जवल बाल वाले, देवताओं के स्वामी अमृत पात्र से सुशोभित, हाथों में सुन्दर सुगन्धित खिले हुए कमल पुष्प लिये, सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीनों नेत्र वाले, हाथों में पाश, रुद्राक्षमाला, अंकुश और कमल धारण किये हुए ऐसे अक्षय भगवान पशुपति मृत्युंजय का मैं स्मरण कर रहा हूं। उनको नमस्कार है।
मानसोपचारै: सम्पूज्य मालाद्बच सम्पूज्य जपं कुर्यात्।।
मानसिक पूजन कर और माला की पूजा कर जप करना चाहिए।
जप मंत्र
ॐ  ह्र्रौं जूं स: ॐ र्भुव: स्व: त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टि वद्र्धनम्। उव्र्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योम्र्मुक्षीय मामृतात्। भूर्भुव: स्वरों जूं स: ह्रौ ॐ ।
मैं त्र्यंबक भगवान महामृत्युञ्जय का पूजन करता हूं जो यश और शरीर शक्ति का वर्धन करने वाले हैं। भगवान शिव से प्रार्थना है कि पका हुआ खरबूजा जिस प्रकार अपने डंठल से अपने आप अलग हो जाता है, उसी प्रकार मुझे भी इन सांसारिक बंधनों से दूर कर मोक्ष को प्राप्त करायें। मुझे अमर बनने की इबछा नहीं।
जपान्तरं पूर्ववन्न्यासान्कृत्वा हस्ते जलं गृहीत्वा। अनेन अमुक संख्याक कृतेन श्री महामृत्युञ्जय मन्त्र जप कर्मणा श्री महामृत्युञ्जय: प्रीयताम्। इति जलं समर्पयेत्।प्रार्थना
मृत्युञ्जय  महादेव  त्राहि मां शरणागतम्।
जन्म मृत्यु जरा रोगै: पीडि़तं कर्म बन्धनै:।।
तावकस्त्वद्गत प्राणस्त्वच्चितोऽहं सदा मृड।।
हे मृत्युंजय महादेव, कर्मबन्धनों से बार-बार जन्म लेना मृत्यु होना, वृद्धावस्था प्राप्त करना, अनेक रोगों से पीडि़त होना आदि दु:खों से रक्षा करें। मैं आपका शरणागत हूं। हे शम्भो, मेरा प्राण और चित्त हमेशा आपमें ही लगे रहें।
चतुर्दश प्रणव संयुक्तो मन्त्रो यथा।
ॐ  ह्रौं ॐ  जूं ॐ : ॐ : ॐव: ॐ  स्व: ॐ  त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्। उव्र्वारुकमिव बन्धनान्नमृत्योम्र्मुक्षीय मामृतात् ॐ भू ॐ भुव: ॐ : ॐ जूं ॐ  ॐ  ।
पुराणोक्तमंत्र
मृत्युञ्जय महादेव त्राहि मां शरणागतम्।
जन्म मृत्यु जराव्याधि: पीडि़तै: कर्म बन्धनै:।।
हे मृत्युंजय, महादेव कर्मबन्धनों से बार-बार जन्म लेना, मृत्यु होना, वृद्धावस्था प्राप्त करना, अनेक रोगों से पीडि़त होना आदि दु:खों से रक्षा करें। मैं आपकी शरण में आया हूं। हे शम्भो, मेरे प्राण और चित्त हमेशा आपमें ही लगे रहें।?