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शिव तांडव स्तोत्र

 
शिव के भक्तों में रावण का नाम सबसे पहले आता है। शास्त्रों के अनुसार, रावण ने भगवान शिव की स्तुति करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। इसी स्तोत्र के जाप से ही उन्हें भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त हुई। कहने का यह तात्पर्य है कि शिव मंत्र में इतनी शक्ति है, जिसके जाप से व्यक्ति शिवजी का कृपा पात्र बन जाता है। शैव मत के अनुसार, शिव तांडव स्तोत्र अपने काव्य-शैली के कारण अधिक लोक प्रिय है। यह काव्य और छन्द रूप में लिखा गया है। इसकी संगीतमय ध्वनि शिवभक्तों में प्रचलित है। लेकिन इसमें उपयोग किए गए शब्द कठिन अवश्य हैं।
शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
 
 
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
 
 
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
 
 
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
 
 
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
 
 
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
 
 
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
 
 
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
 
 
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
 
 
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
 
 
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
 
 
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
 
 
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥
 
 
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
 
 
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥
 
 
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
 
 
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
 
 
शिव तांडव स्तोत्र को जपने से व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति शिव तांडव स्तोत्र को सच्चे हृदय और शुद्ध उच्चारण के साथ विधि अऩुसार जपे तो उसका जीवन कल्याणमय हो जाता है।
इस तरह, रावण के द्वारा रचा गया शिव तांडव स्तोत्र
पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि एक बार रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को लंका ले जाने लगा तो, महादेव ने अपने अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश जहां था फिर वहीं अवस्थित हो गया। इस दौरान पर्वत से रावण का हाथ दब गया और फिर उसने शिव जी से क्षमा याचना की। साथ ही उनकी स्तुति गान करने लगे। उनकी यही स्तुति कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाया।
शिव तांडव स्तोत्र की पाठ विधि
• प्रातः काल या प्रदोष काल में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना है।
• पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
• इसके बाद शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
• अगर नृत्य के साथ इसका पाठ करें तो सर्वोत्तम होगा।
• पाठ के बाद शिव जी का ध्यान करें और अपनी प्रार्थना करें।