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सालों बाद देवउठनी एकादशी पर विवाह का कोई अबूझ मुहूर्त नहीं

Submitted by Shanidham

वर्ष में तीन बार विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त आते हैं। जिसमें बसंत पंचमी, देवउठनी एकादशी व फुलैरा दौज शामिल हैं। आठ नवंबर को देवउठनी एकादशी है। लेकिन, वर्षों बाद इस बार राशियों के हेर-फेर के चलते देवउठनी एकादशी पर विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त नहीं है। इसका कारण यह है कि वर्तमान में सूर्य तुला राशि में है। तुला राशि में सूर्य के होने से विवाह नहीं होते है। देवउठनी एकादशी के बाद पहला विवाह मुहूर्त 18 नवंबर है।
चार महीने से क्षीर सागर में सोए भगवान श्रीहरि विष्णु 8 नवंबर को देवोत्थान एकादशी पर योगनिद्रा से जाग चुके हैं। आज शालिग्राम के साथ माता तुलसी का विवाह होगा। देव दीपावली के मौके पर एक बार फिर दीपक की रोशनी से घर-आंगन जगमग होंगे। हरि मंदिरों में इस दिन भगवान को विशेष शृंगार धराया गया। ज्योतिषि के अनुसार कार्तिक मास की एकादशी अबूझ मुहूर्त होती है। जिसे मांगलिक कार्यों के लिए सबसे शुभ माना जाता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा। इसके लिए 10 दिन इंतजार करना होगा। देव उठनी एकादशी के पहले विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति राशि बदलकर 12 साल बाद अपनी ही राशि धनु में आ रहा है। बृहस्पति का धनु राशि में गोचर शुभ माना गया है। देवउठनी एकादशी के 9 दिन बाद ही सूर्य भी राशि बदलेगा। विवाह के मुहूर्त में वर के लिए सूर्य और कन्या के लिए बृहस्पति की स्थिति देखी जाती है। इसलिए इन दोनों ग्रहों के राशि परिवर्तन से इस बार विवाह के कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। लेकिन, वर्तमान में सूर्य तुला राशि में है। तुला राशि में सूर्य के होने से विवाह नहीं होते। ऐसे में इस बार देवउठनी एकादशी पर अबूझ मुहूर्त नहीं है।
नवंबर-दिसंबर में 14 दिन विवाह मुहूर्त
देव प्रबोधिनी एकादशी 8 नवंबर के बाद 17 नवंबर को सूर्य के राशि परिवर्तन के साथ ही 18 नवंबर से विवाह शुरू हो जाएंगे। जो 15 दिसंबर तक रहेंगे। इन दिनों में केवल 14 दिन ही विवाह के मुहूर्त रहेंगे। 13 दिसंबर से 13 जनवरी तक मलमास होने के कारण इन दिनों में विवाह नहीं होंगे। नवंबर में 19, 21, 22, 28, 29 और 30 नवंबर तथा दिसंबर में 1, 5, 6, 7, 10, 11 और 12 दिसंबर को विवाह होंगे। संसार में ऊर्जा का संचार करने वाला व ज्योतिषशास्त्र में आत्मा का कारण सूर्य 18 अक्टूबर से 17 नवंबर तक अपनी नीच राशि तुला में विद्यमान हैं। ऐसे में सभी राशियों के जातकों का जीवन प्रभावित रहेगा। जिसके चलते शुभ कार्यों पर विराम लगा है। देवउठनी एकादशी पर भी सूर्य तुला राशि में है। ऐसे में विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त नहीं है। 18 नवंबर को विवाह का पहला शुभ मुहूर्त होगा।
वर्ष में दो दिन लगेगा सूर्य ग्रहण-56 दिन होंगे मांगलिक कार्य
देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार देव जागने के 10 दिन बाद वैवाहिक व अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत 18 नवंबर से होगी। काल गणना के अनुसार आने वाले पंचांग वर्ष में दो दिन सूर्य ग्रहण लगेगा। इसके तहत चालू साल के अंत में 26 दिसंबर 2019 को ग्रहण लगेगा। साल 2020 में 21 जून, दूसरा सूर्य ग्रहण 14 व 15 दिसंबर की शाम 7 बजकर 3 मिनट 55 सैकेंड से शुरू होगा व रात 12 बजकर 23 मिनट 3 सैकेंड तक रहेगा।
तुलसी के श्राप से भगवान विष्णु पड़ गए थे काले
प्रबोधनी एकादशी ही वृंदा (तुलसी) के विवाह का दिन है। तुलसी का भगवान विष्णु के साथ विवाह करके लग्न की शुरुआत होती है। वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु काले पड़ गए थे। उन्हें शालिग्राम के रूप में तुलसी चरणों में रखा जाएगा। मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल हरिशयन एकादशी पर भगवान चार महीने के लिए शयन करने चले जाते और देवोत्थान एकादशी पर जागते हैं। प्रबोधनी एकादशी पर शुक्रवार को भगवान को पूरे विधि-विधान से भक्तों ने जगाया। दिनभर श्रद्धालुओं ने उपवास रखा। भगवान को जगाने के लिए आंगन में ईखों का घर बनाया गया। चार कोने पर ईंख और बीच में एक लकड़ी का पीढ़ा रखा गया। आंगन में भगवान के स्वागत के लिए अरिपन यानी अल्पना किया गया। शाम के समय इस पर शालिग्राम भगवान को रखकर पूजा की जाएगी। वेद मंत्रोच्चार के साथ कम से कम पांच श्रद्धालु मिलकर भगवान को जगाएंगे।