Welcome to Shree Shanidham Trust

देवउठनी एकादशी पूजा विधि और महत्व

Submitted by Shanidham

चार माह की योग निद्रा से भगवान विष्णु के जागने का दिन होता है देवउठनी एकादशी। इसे देवोत्थान एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के जागते ही चातुर्मास का समापन होता है और इसके चार दिन बाद बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरिहर मिलन होता है। यानी उस दिन भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार पुन: भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। इस दिन से समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 8 नवंबर 2019 शुक्रवार को मनेगी। इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है। कहा जाता है इस दिन जो व्यक्ति तुलसी विवाह करता है उसे एक हजार अश्वमेघ यज्ञों के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। वैष्णव संप्रदाय का अनुसरण करने वाले श्रद्धालु चार माह बाकायदा भगवान विष्णु को शैय्या पर सुलाकर रखते हैं। वे इस दिन भगवान विष्णु को उत्तिष्ठ गोविदं त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाा जगत सुप्तं भवेदिदम्।। उत्थिते चेष्टते सर्वमुक्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव:। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:।। शारदानि च पुष्पाणि गृहाणमम केशवं। मंत्र से जगाते है।
ऐसे करें पूजन
इसके बाद उन्हें स्नानादि करवाकर सुंदर वस्त्रों, आभूषणों से उनका श्रृंगार करें और पूजन संपन्न करे। भगवान विष्णु के साथ पंचदेव पूजा भी करना अनिवार्य रहता है। इसके बाद 56 प्रकार की वस्तुओं का नैवेद्य लगाएं। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें। देवोत्थान एकादशी का व्रत रखने का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है। इसके लिए अपने घर के आंगन को गाय के गोबर से लीप लें। यदि गोबर से नहीं लीपा है तो शुद्ध जल से धोकर गंगाजल का छिडक़ाव करें। आंगन के मध्य में सुंदर रंगों और फूलों से रंगोली सजाएं और उसके मध्य में तुलसी का पौधा रखें। गन्ने से सुंदर मंडप सजाएं। इसके बाद भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम की स्थापना करें। मंत्रोच्चार के साथ षोडशोपचार पूजन करते हुए शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाएं। विभिन्न प्रकार के फल, मिष्ठान्न आदि का भोग लगाएं। मंगल गीत गाएं।
व्रत कथा और तुलसी विवाह का महत्व
देवउठनी एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु चार महीने तक सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। देवउठनी एकादशी से ही सारे मांगलिक कार्य की शुरुआत हो जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह एकादशी हर साल नवंबर में आती है। इस बार देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह 8 नवंबर 2019 को है।
देवउठनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी की तिथि : 8 नवंबर 2019
एकादशी तिथि आरंभ : 07 नवंबर 2019 की सुबह 09 बजकर 55 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त : 08 नवंबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक
देवउठनी एकादशी का महत्व
मान्यता के अनुसार सभी शुभ कामों की शुरुआत देवउठनी एकादशी से की जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था। फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर भगवान विष्णु ने शयन किया। इसके बाद चार महीने की योग निद्रा त्यागने के बाद भगवान विष्णु जागे। इसी के साथ देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास का अंत हो जाता है। जागने के बाद सबसे पहले उन्हें तुलसी अर्पित की जाती है। यह भी मान्यता है कि इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से 100 गायों को दान के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। इस एकादशी का व्रत करना बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। अब घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं। एक ओखली में गेरू से भगवान विष्णु का चित्र बनाएं। अब ओखली के पास फल, मिठाई सिंघाड़े और गन्ना रखें, फिर उसे डलिया से ढक दें। रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीपक जलाएं। इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को यह कहते हुए उठाएं उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास।
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
श्उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
इसलिए होता है तुलसी विवाह
देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह भी आयोजित किया जाता है। यह शादी तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु के रूप शालीग्राम के बीच होती है। यह विवाह भी सामान्य विवाह की ही तरह धूमधाम से होता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं तो सबसे पहले तुलसी की ही प्रार्थना सुनते हैं। तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान विष्णु को योग निद्रा से जगाना।
देवउठनी एकादशी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान श्री हरि विष्णु से लक्ष्मी जी ने पूछा हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है, तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अत: तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।