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आकाशीय उर्जा साधनी हो तो आज पूजे गौमाता

Submitted by Shanidham

आकाशीय उर्जा साधनी हो तो करें आज पूजे गोवंश
गोपाष्टमी : श्रीकृष्ण ने गांव वालों की रक्षा करके दूर किया था इंद्र का अहंकार
वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार गाय का गोबर परमाणु विकिरण को कम कर सकता है। गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता है। घर के बाहर गोबर लगाने की परंपरा के पीछे यही वैज्ञानिक कारण है। गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध करने पर पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर द्वारा प्राप्त होती है। इसके अलावा गाय की कूबड़ ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। इसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है। इसलिए गाय का दूध हल्का पीला होता है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। जिससे कैंसर और अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है। गाय की बनावट और गाय में पाए जाने वाले तत्वों के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है। भविष्य पुराण के अनुसार गाय को माता यानी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।
गोपूजन से जुड़ा पर्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी मनाई जाती है। मुख्य रूप से यह गोपूजन से जुड़ा पर्व है। इस दिन गौ का पूजन और अर्चन किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इस दिन से ही गायों को चराना आरंभ किया था। इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे। इस साल गोपाष्टमी 4 नवंबर यानी आज मनाई जा रही है। इस दिन गौ और उनके बछड़ों का श्रृंगार करके उनकी आरती उतारी जाती है। माना जाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है। इसलिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है। गौ की परिक्रमा भी लाभ देती है।
कृष्ण ने थामा था गोवर्धन पर्वत
गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है। गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टिका दिया थाए जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है। उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा। तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगाई और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया।
दूर किया था इंद्र का अहंकार
देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि उनके प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को श्रीकृष्ण और उनके ग्वालवाल नहीं झेल पाएंगे। परंतु जब लगातार 7 दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब 8वें दिन इन्द्र की आंखें खुलीं और उनका अहंकार दूर हुआ। तब वह भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की। कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम गोविंद पड़ा। वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था। उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है। एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन से ही श्रीकृष्ण ने गाय चरानी शुरू की थी। यशोदा मईया भगवान श्रीकृष्ण को प्रेमवश कभी गौ चारण के लिए नहीं जाने देती थीं, लेकिन एक दिन कन्हैया ने जिद कर गौ चारण के लिए जाने को कहा। तब यशोदा जी ने ऋषि शांडिल्य से कहकर मुहूर्त निकलवाया और पूजन के लिए अपने श्रीकृष्ण को गौ चारण के लिए भेजा। मान्यता है कि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। इसलिए गौ पूजन से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।
ऐसे मनाएं गोपाष्टमी
इस दिन गायों को स्नान कराएं। तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें। गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। देशभर में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं के लिए यह बड़े महत्व का उत्सव है। इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ कीर्तन यात्राएं निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गांव-गांव में मनाया जाने वाला उत्सव है। कार्तिक शुक्ल अष्टमी यानी सोमवार सुबह गायों को स्नान कराएं। इसके बाद उनको पुष्प, अक्षत, गंध आदि से विधि पूर्वक पूजा करें। फिर ग्वालों को वस्त्र आदि देकर उनका भी पूजन करें। इसके बाद गायों को ग्रास दें और परिक्रमा करें। परिक्रमा करने के बाद गायों के साथ कुछ दूर जाएं। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपाष्टमी की शाम को जब गायें चरकर वापस आएं तो उनका पंचोपचार पूजन करें, उन्हें भोजन दें और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। अष्टमी तिथि 04 नवंबर दिन सोमवार को तडक़े 02 बजकर 56 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन 05 नवंबर दिन मंगलवार को सुबह 04 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है।
गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित दिन
गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित गोपाष्टमी आज मनाई जा रही है।  हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी उत्सव मनाया जाता है। गोपाष्टमी मुख्य रूप से मथुरा, ब्रज और वृंदावन क्षेत्र में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन गाय, बछड़े और ग्वालों की विशेष पूजा की जाती है। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक इंद्र के प्रकोप से गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारण किए रहे। अष्टमी के दिन इंद्र ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। उनका अहंकार टूट गया और वे श्रीकृष्ण के शरण में आ गए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया। उस दिन भगवान श्रीकृष्ण गोविन्द कहलाए। उस दिन के बाद से ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा।
यह भी है विधान
गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा के साथ ही उनके पैरों के नीचे से निकलने का भी विधान है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। गाय का दूध अमृत के समान होता है, वहीं उसका गोबर और मूत्र भी बहुपयोगी होता है। गोपाष्टमी उत्सव गायों के सरंक्षण से भी जुड़ा है। गाय और बछड़े को सुबह नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं। अन्य आभूषण पहनाएं जाते हैं। गौ माता के सींगो पर चुनड़ी बांधी जाती है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण स्पर्श किए जाते हैं। गाय की परिक्रमा की जाती हैं। इसके बाद उन्हें चराने बाहर ले जाते है। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं। कई लोग ग्वालों को नए कपड़े देकर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता हैं। जिनके घरों में गाय नहीं होती है वे लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढ़ाते है, दीपक लगाकर गुड़ खिलाते है। गौशाला में भोजन और अन्य सामान का दान भी करते है। महिलाएं कृष्ण जी की भी पूजा करती है, गाय को तिलक लगाती है। भजन किए जाते हैं। कृष्ण पूजा भी की जाती हैं।