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महापर्व 2019: धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज का शुभ मुहूर्त और महत्व

Submitted by Shanidham

महापर्व 2019: धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज का शुभ मुहूर्त और महत्व
इस दिवाली प्रज्जवलित करें करूणा, ज्ञान व कृतज्ञता का दीपक
संसार भर में लोग इस समय प्रकाश का पर्व दिवाली मनाने की तैयारी कर रहे हैं। पूरब के सबसे बड़े त्योहारों में से एक दिवाली बुराई पर अच्छाई के, अन्धकार पर प्रकाश के और अज्ञानता पर ज्ञान के विजय का सूचक है।
तेल के दीपक को प्रज्ज्वलित करने के लिए बत्ती को तेल में डुबाना पड़ता है, परन्तु यदि बत्ती पूरी तरह से तेल में डूबी रहे तो यह जल कर प्रकाश नहीं दे पाएगी, इसलिए उसे थोड़ा सा बाहर निकाल के रखते हैं। हमारा जीवन भी दीपक के इसी बत्ती के समान है, हमें भी इस संसार में रहना है फिर भी इससे अछूता रहना पड़ेगा। यदि हम संसार की भौतिकता में ही डूबे रहेंगे तो हम अपने जीवन में सच्चा आनंद और ज्ञान नहीं ला पाएंगे। संसार में रहते हुए भी इसके सांसारिक पक्षों में न डूबने से हम आनंद एवं ज्ञान के द्योतक बन सकते हैं। जीवन में ज्ञान के प्रकाश का स्मरण कराने के लिए ही दिवाली मनाई जाती है। दिवाली केवल घरों को सजाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन के इस गूढ़ रहस्य को उजागर/संप्रेषित करने के लिए भी मनाई जाती है। हर दिल में ज्ञान और प्रेम का दीपक जलाएं और हर एक के चेहरे पर मुस्कान की आभा लाएं।
प्रकाश की पंक्तिया
दिवाली को दीपावली भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है प्रकाश की पंक्तिया। जीवन में अनेक पक्ष एवं पहलू आते हैं और जीवन को पूरी तरह से अभिव्यक्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम उन सब पर प्रकाश डालें। प्रकाश कि ये पंक्तिया हमें याद दिलाती हैं कि जीवन के हर पहलू पर ध्यान देने और ज्ञान का प्रकाश डालने की जरूरत है। प्रत्येक मनुष्य में कुछ अच्छे गुण होते हैं और हमारे द्वारा प्रज्ज्वलित हर दीपक इसी बात का प्रतीक है। कुछ लोगों में सहिष्णुता होती है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता आदि गुण होते हैं जबकि कुछ लोगों में लोगों को जोड़ के रखने का गुण होता है। हमारे भीतर के ये छिपे हुए गुण एक दीपक के समान है। केवल एक ही दीपक प्रज्ज्वलित कर के संतुष्ट न हों जाएं, हजारों दीपक जलाएं! अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने के लिए हमें अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता है। ज्ञान के दीपक को जला कर एवं ज्ञान अर्जित कर के हम अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को जागृत कर देते हैं। जब ये प्रकाशित एवं जागृत हो जाते हैं, तब ही दिवाली है।
दिवाली - पटाखे, मिठाई एवं उपहार
दिवाली में पटाखे जलाने का भी एक गूढ़ अर्थ है। जीवन में अक्सर अनेक बार हम भावनाओं, निराशा एवं क्रोध से भरे पड़े होते हैं, पटाखों की तरह फटने को तैयार। जब हम अपनी भावनाओं, लालसाओं, विद्वेष को दबाते रहते हैं तब ये एक विस्फोट बिंदु तक पहुच जाते हैं। पटाखों को जलाना विस्फोट करना, दमित भावनाओं को मुक्त करने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाया गया एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है। जब हम बाहरी दुनिया में एक विस्फोट देखते हैं तो अपने भीतर भी एक इसी प्रकार की समान संवेदना महसूस करते हैं। विस्फोट के साथ ही बहुत सा प्रकाश फैल जाता है। जब हम अपनी इन भावनाओं से मुक्त होते हैं तो गहन शांति का उदय होता है। दिवाली के दौरान एक और परंपरा है, मिठाईयों और उपहारों का आदान-प्रदान। एक-दूसरे को मीठा और उपहार देने का अर्थ है भूतकाल के सभी खटास को मिटा कर आने वाले समय के लिए मित्रता को नवजीवन प्रदान करना।
ज्ञान और प्रकाश
कोई भी उत्सव सेवा भावना के बिना अधूरा है। ईश्वर से हमें जो भी मिला है, वह हमें दूसरों के साथ भी बांटना चाहिए क्योंकि जो बांटना है, वह हमें भी तो कहीं से मिला ही है और यही सच्चा उत्सव है। आनंद एवं ज्ञान को फैलाना ही चाहिए और ये तभी हो सकता है जब लोग ज्ञान में साथ आएं। दिवाली का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना। अत: भूतकाल के पश्चाताप और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर इस वर्तमान क्षण में रहें। यही समय है कि हम साल भर की आपसी कलह और नकारात्मकताओं को भूल जाएं। यही समय है कि जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है उस पर प्रकाश डाला जाए और एक नई शुरुआत की जाए। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है तो उत्सव को और भी बल मिलता है।
अध्यात्मिक ज्ञान और दिवाली
रीति-रिवाज़ एवं धार्मिक अनुष्ठान ईश्वर के प्रति कृतज्ञता या आभार का प्रतीक ही तो हैं। ये हमारे उत्सव में गहराई लाते हैं। दिवाली में परंपरा है कि हमने जितनी भी धन-संपदा कमाई है उसे अपने सामने रख कर प्रचुरता यानी तृप्ति का अनुभव करें। जब हम अभाव का अनुभव करते हैं तो अभाव बढ़ता है, परन्तु जब हम अपना ध्यान प्रचुरता पर रखते हैं तो प्रचुरता बढ़ती है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है कि धर्मस्य मूलं अर्थ: अर्थात सम्पन्नता धर्म का आधार होती है। जिन लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है, उनके लिए दिवाली वर्ष में केवल एक बार आती है, परन्तु ज्ञानियों के लिए हर दिन और हर क्षण दिवाली है। हर जगह ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह दिवाली ज्ञान के साथ मनाएं और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें। अपने ह्रदय में प्रेम का, घर में प्रचुरता/तृप्ति का दीपक जलाएं। इसी प्रकार दूसरों की सेवा के लिए करुणा का, अज्ञानता को दूर करने के लिए ज्ञान का और ईश्वर द्वारा हमें प्रदत्त उस प्रचुरता के लिए कृतज्ञता का दीपक जलाएं
दिवाली के 5 दिन का महत्व
दीपावली एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ प्रकाश की पंक्तियां होता है। भारतीय कैलेंडर के हिसाब से यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।
दीपावली रोशनी का त्यौहार है। यह एक प्राचीन हिंदू त्यौहार है जिसे हर वर्ष शरद ऋतु में मनाया जाता है। दिवाली भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। भारतवर्ष में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। यह त्यौहार 5 दिनों तक चलने वाला एक महापर्व है।
धनतेरस
धनतेरस : उत्सव के पहले दिन घरों और व्यावसायिक परिसर को पुनर्निर्मित किया जाता है और सजाया जाता हैं। धन और समृद्धि की देवी के स्वागत के लिए रंगोली की डिजाइन के सुंदर पारंपरिक रूपांकनों के साथ रंगीन प्रवेश द्वार बनाए जाते है। उसकी लम्बी प्रतीक्षा का आगमन दर्शाने के लिए घर में चावल के आटे और कुमकुम से छोटे पैरों के निशान बनाएं जाते है। पूरी रात दीपक जलाए जाते है। इस दिन को शुभ माना जाता है इसलिए महिलाएं कुछ सोने या चांदी या कुछ नए बर्तन खरीदती है और भारत के कुछ भागों में पशु की भी पूजा की जाती हैं। इस दिन को धन्वन्तरि (आयुर्वेद के भगवान या देवताओं के चिकित्सक) का जन्मदिन माना जाता है और धन्वन्तरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यम का पूजन करने के लिए सारी रात दीपक जलाएं जाते हैं इसलिए यह यमदीपदान के रूप में भी जाना जाता है। यह असमय मृत्यु के डर को दूर करने के लिए माना जाता है।
धनतेरस- शुक्रवार, 25 अक्टूबर
शुभ मुहूर्त 
शाम 19:10 से 20:15 तक 
प्रदोष काल
17:42 से 20:15 तक 
वृषभ काल
18:51 से 20:47 तक
नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी : दूसरे दिन नरक चतुर्दशी होती है। इस दिन सुबह जल्दी जागना और सूर्योदय से पहले स्नान करने की एक परंपरा है। कहानी यह है कि दानव राजा नरकासुर प्रागज्योतीसपुर (नेपाल का एक दक्षिण प्रांत) के शासक इंद्र देव को हराने के बाद अदिति (देवताओं की मां) के मनमोहक झुमके छीन लेते हैं और अपने अन्तरूपुर में देवताओं और संतों की सोलह हजार बेटियों को कैद कर लेते हैं। नरक चतुर्दशी के अगले दिन भगवान कृष्ण ने दानव को मार डाला और कैद हुई कन्याओं को मुक्त कराकर अदिति के कीमती झुमके बरामद किए थे। महिलाओं ने अपने शरीर को सुगंधित तेल से मालिश किया और अपने शरीर से गंदगी को धोने के लिए एक अच्छा स्नान किया। इसलिए सुबह जल्दी स्नान की यह परंपरा बुराई पर दिव्यता की विजय का प्रतीक है। यह दिन अच्छाई से भरे एक भविष्य की घोषणा का प्रतिनिधित्व करता है।
नरक चतुर्दशी- शनिवार, 26 अक्टूबर
समस्त प्राणियों की शुद्धि का माह कार्तिक महीना होता है।
महापर्व दीपावली महालक्ष्मी पूजा
लक्ष्मी पूजन : तीसरा दिन समारोह का सबसे महत्वपूर्ण दिन है लक्ष्मी पूजा का। यह वह दिन है जब सूरज अपने दूसरे चरण में प्रवेश करता है। अंधियारी रात होने के बावजूद भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। छोटे छोटे टिमटिमाते दीपक पूरे शहर में प्रज्वलित होने से रात का अभेद्य अंधकार धीरे-धीरे गायब हो जाता है। यह माना जाता है कि लक्ष्मीजी दीपावली की रात को पृथ्वी पर चलती हैं और विपुलता व समृद्धि के लिए आशीर्वाद की वर्षा करती है। इस शाम लोग लक्ष्मी पूजा करते है और घर की बनाई हुए मिठाई सभी को बांटते है। यह बहुत ही शुभ दिन है क्योंकि इसी दिन कई संतों और महान लोगों ने समाधि ली और अपने नश्वर शरीर छोड़ दिया था। महान संतो के दृष्टांत में भगवान कृष्ण और भगवान महावीर शामिल हैं। यह वो दिन भी है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद माता सीता और लक्ष्मण के साथ घर लौटे थे। दिवाली के दिन के बारे में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी कठोपनिषद से भी है। एक छोटा सा लडक़ा था जिसका नाम नचिकेत था। वह मानता था कि मृत्यु के देवता यम अमावस्या की अंधेरी रात के जैसे रूप में काले हैं लेकिन जब वह व्यक्ति के रूप में यम से मिला तो वह यम का शांत चेहरा और सम्मानजनक कद देखकर हैरान रह गया। यम ने नचिकेता को समझाया कि केवल मौत के अंधेरे के माध्यम से गुजरने के बाद व्यक्ति उच्चतम ज्ञान की रोशनी देखता है और उसकी आत्मा, परमात्मा के साथ एक होने के लिए अपने शरीर के बंधन से मुक्त होती हैं। तब नचिकेता को सांसारिक जीवन के महत्व और मृत्यु के महत्व का एहसास हुआ। अपने सभी संदेह को छोडक़र उसने फिर दिवाली के समारोह में हिस्सा लिया।
दीपावली और लक्ष्मी पूजा-  
रविवार, 27 अक्टूबर

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 
रात में 18:44 से 20:14 तक 
प्रदोष काल
17:40 से 20:14 तक 
वृषभ काल
18:44 से 20:39 तक
दीपावली महानिशीथ काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 
23:39 से 24:30 तक 
महानिशीथ काल 
23:39 से 24:30 तक 
सिंह काल
25:15:33 से 27:33:12 तक
दीपावली शुभ चौघड़िया मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त्त (शुभ)
13:28 से 14:52 तक 
सायंकाल मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल)
17:40 से 22:29 तक 
रात्रि मुहूर्त्त (लाभ)
25:41:26 से 27:17:36 तक 
उषाकाल मुहूर्त्त (शुभ)
28:53:46 से 30:29:57 तक
गोवर्धन पूजा
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर यह पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है। इस त्यौहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है। इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है।  
गोवर्धन पूजा- सोमवार, 28 अक्टूबर 
गोवर्धन पूजा मुहूर्त 
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त
15:25 से 17:39 तक
भाई दूज
दिवाली के बाद भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है। यह पर्व दिवाली के 2 दिन बाद कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है। 5 दिनों तक चलने वाले महापर्व का यह आखिरी पर्व होता है। भाई दूज में बहने अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और भाई की लंबी आयु और अच्छे भविष्य की कामना करती हैं।
भाई दूज- मंगलवार, 29 अक्टूबर
भाई दूज का मुहूर्त
भाई दूज तिलक का समय 
13:11 से 15:25 तक