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संतान की दीर्घायु व कल्याण का पर्व है अहोई अष्टमी

Submitted by Shanidham

रोहित पारीक 

संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए माताएं अहोई अष्टमी का व्रत सोमवार को रखेंगी। दिनभर व्रत रखकर माताएं सोमवार को तारामंडल के उदय होने पर तारों को अध्र्य देकर व्रत खोलेंगी, कुछ माताएं चंद्रमा को अध्र्य देकर व्रत खोलेंगी। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखा जाता है। इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है। अहोई व्रत रखकर माताएं अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। जिन लोगों के संतान नहीं हो पा रही हैं उनके लिए यह व्रत विशेष है। अहोई के दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण होगा।
इस बार सोमवार को अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा पुण्य नक्षत्र में रहेगा। इसके अलावा इस दिन साध्य योग और सर्वाथ सिद्धि योग बन रहा है। इस कारण यह अहोई अष्टमी की पूजा का समय और भी ज्यादा खास बन रहा है। 21 अक्टूबर को शाम पांच बजकर 42 मिनट से शाम छह बजकर 59 मिनट तक पूजा का शुभ मुहुर्त रहेगा। इस मुहुर्त में माताओं के अहोई अष्टमी की पूजा करने से न केवल उनकी संतान की उम्र लंबी होगी, बल्कि संतान की सभी परेशानियां भी समाप्त हो जाएंगी। इसके साथ ही इस दिन अभिजीत मुहुर्त और अमृत काल मुहुर्त होने के कारण पूजा का शुभ फल प्राप्त होगा।
ऐसे करें अहोई माता की पूजा
पूजन के लिए दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है। फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं। इसके बाद रात में तारों को अध्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं। जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है। सामान्यत: इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है। ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है।
कैसे रखें इस दिन उपवास
प्रात: स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें। अहोई माता की आकृति, गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाएं। सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें। पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें। पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें और उन्हें दूध भात अर्पित करें। फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा लेकर अहोई की कथा सुनें। कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासू मां को देकर उनका आशीर्वाद लें। अब चन्द्रमा को अध्र्य देकर भोजन ग्रहण करें। चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें।
अहोई अष्टमी व्रत के विशेष प्रयोग
- अगर संतान की शिक्षा, करियर, रोजगार में बाधा आ रही हो तो अहोई माता को पूजन के दौरान दूध-भात और लाल फूल अर्पित करें। इसके बाद लाल फूल हाथ में लेकर संतान के करियर और शिक्षा की प्रार्थना करें। संतान को अपने हाथों से दूध भात खिलाएं। फिर लाल फूल अपनी संतान के हाथों में दे दें और फूल को सुरक्षित रखने को कहें।
- वैवाहिक या पारिवारिक जीवन में बाधा आ रही है तो अहोई माता को गुड़ का भोग लगाएं और एक चांदी की चेन अर्पित करें। मां पार्वती के मंत्र ॐ ह्रीं उमाये नम: का 108 बार जाप करें। संतान को गुड़ खिलाएं और अपने हाथों से उसके गले में चेन पहनाएं। उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दें।
- संतान का सुख पाना हो तो अहोई माता और शिव जी को दूध भात का भोग लगाएं। चांदी की नौ मोतियां लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनाएं। अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें। पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं। अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं।
अहोई अष्टमी 2019 व्रत विधि
व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प किया जाता है कि हे, अहोई माता। मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पार्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है। माताजी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दीया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी या सूट के दुप्पटे में बांध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते है। ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिडक़ा जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बयाने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को अध्र्य किया जाता है।
अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छुएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार था। जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु अपने बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजऱ एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा-भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है अनहोनी से बचाना। जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 2019
पूजा समय : सांय 17.45 से 19.02 तक (21 अक्टूबर 2019)
तारों के दिखने का समय : 18.10 बजे
चंद्रोदय : रात्रि 11.46 (21 अक्टूबर 2019)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ : प्रात: 6.44 बजे  (21 अक्टूबर 2019)
अष्टमी तिथि समाप्त :  प्रात: 5.25 बजे (22 अक्टूबर 2019)