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आज तुला संक्रांति या तुला संक्रमण पर करें सूर्य की पूजा

Submitted by Shanidham

सूर्य के कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करने को तुला संक्रांति कहा जाता है। यह हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक महीने में आती है। इस दिन से सूर्य 16 नवंबर तक तुला राशि में रहेगा। यह संक्रांति कई बार दुर्गाष्टमी पर नवरात्रि में भी पड़ती है जिसे पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। राशि परिवर्तन के समय सूर्य की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य को अध्र्य दिया जाता है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जाती है।
सूर्य के गोचर को कहते है संक्रांति
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर और ज्योतिष के मुताबिक पूरे साल में 12 संक्रान्तियां होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। संक्रांति पर पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफी महत्व है।
क्या है तुला संक्रांति
सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करना तुला संक्रांति कहलाता है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में पड़ता है। कुछ राज्य में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। इनमें मुख्य उड़ीसा और कर्नाटक है। यहां के किसान इस दिन को अपनी चावल की फसल के दाने के आने की खुशी के रूप में मनाते हैं। इन राज्यों में इस पर्व को बहुत अच्छे ढंग से मनाया जाता है। तुला संक्रांति का कर्नाटक और ओडि़सा में खास महत्व है। इसे तुला संक्रमण भी  कहा जाता है। इस दिन कावेरी के तट पर मेला लगता है, जहां स्नान और दान-पुण्य किया जाता है।
चढ़ाए जाते हैं ताजे धान
तुला संक्रांति और सूर्य के तुला राशि में रहने वाले पूरे 1 महीने तक पवित्र जलाशयों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। तुला संक्रांति का वक्त जो होता है उस दौरान धान के पौधों में दाने आना शुरू हो जाते हैं। इसी खुशी में मां लक्ष्मी का आभार जताने के लिए ताजे धान चढ़ाए जाते हैं। कई इलाकों में गेहूं और कारा पौधे की टहनियां भी चढ़ाई जाती हैं। मां लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है कि वो उनकी फसल को सूखा, बाढ़, कीट और बीमारियों से बचाकर रखें और हर साल उन्हें लहलहाती हुई ज्यादा फसल दें। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजन का भी विधान है। माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी का परिवार सहित पूजन करने और उन्हें चावल अर्पित करने से भविष्य में कभी भी अन्न की कमी नहीं आती है। भारत के कुछ राज्यों जैसे आन्ध्र प्रदेश, ओडि़सा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को साल के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। जबकि बंगाल और असम जैसे कुछ जगहों पर संक्रांति के दिन को साल की समाप्ति की तरह माना जाता है।
जीवन पर पड़ता है संक्रातियों का असर
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं, जिन्हें मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन के नाम से जाना जाता है। विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश को ही संक्रांति की संज्ञा दी गई है। सूर्य बारी-बारी से इन 12 राशियों से हो कर गुजरता है। वैसे तो सूर्य का इन सभी राशियों से होकर गुजरना शुभ माना जाता है लेकिन हिन्दू धर्म में कुछ राशियों में सूर्य के इस संक्रमण को बेहद खास मानते हैं।  अगर देखा जाए तो संक्रांति का सम्बन्ध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है, इसीलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव, बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है, यह सब सूर्य के कारण ही संपन्न हो पाता है। संक्रांति के दिन पूजा.अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। हम सभी जानते हैं कि संक्रांति एक शुभ दिन होता है। पूर्णिमा-एकादशी आदि जैसे शुभ दिनों की तरह ही संक्रांति के दिन की भी बहुत मान्यता है। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है। जो भी व्यक्ति संक्रांति पर व्रत रखना चाहता हो उसे एक दिन पहले केवल एक बार भोजन करना चाहिए। जिस दिन संक्रांति हो उस दिन प्रात: काल उठकर अपने दांतों को अच्छे से साफ करने के बाद स्नान करें। उपासक अपने स्नान के पानी में तिल अवश्य मिला लें। इस दिन दान-धर्म की बहुत मान्यता है इसीलिए स्नान के बाद ब्राह्मण को अनाज, फल आदि दान करना चाहिए। इसके बाद उसे बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति दूसरों को भी भोजन देना चाहिए। संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है कि जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।