Submitted by Shanidham
करवा चौथ व्रत में पूरे शिव परिवार की पूजा होती है। इसके अलावा चतुर्थी स्वरूप करवा की भी पूजा होती है। इस दिन खासतौर पर श्रीगणेश जी का पूजन होता है और उन्हें ही साक्षी मानकर व्रत शुरू किया जाता है। व्रत वाले दिन शाम के समय विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की विधिवत पूजा करती हैं।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर साल करवा चौथ मनाया जाता है। इस साल ये तिथि 17 अक्टूबर को पड़ रही है। करवा चौथ को कर्क चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन को सुहागिनों के लिए महत्वपूर्ण दिन माना गया है। इस साल करवा चौथ पर 4 अद्भुत संयोग पड़ रहे हैं। ऐसा संयोग 70 सालों बाद आया है। करवा चौथ का व्रत कठिन होता है क्योंकि व्रत अवधि में जल ग्रहण भी नहीं किया जाता है। शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना से इस व्रत को रखतीं हैं। व्रत वाले दिन शाम के समय विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की विधिवत पूजा करती हैं। पूजन के बाद चंद्रमा को देखने और अघ्र्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त
तिथि : कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी
तारीख : 17 अक्टूबर
दिन : गुरुवार
पूजा मुहूर्त : शाम 5.50 से 07.05 बजे तक
पूजा मुहूर्त की कुल अवधि : 01 घंटा 15 मिनट
करवा चौथ व्रत समय : सुबह 06.23 बजे से रात 08.16 तक
व्रत की कुल अवधि : 13 घंटे 53 मिनट
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय : रात 8.16 बजे
चतुर्थी तिथि : करवा चौथ के दिन चतुर्थी तिथि की शुरुआत सुबह 06 बजकर 48 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समापन : 18 अक्टूबर सुबह 07 बजकर 29 मिनट पर
यह है महात्मय
करवा चौथ को देश के अन्य भागों में कर्क चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन होता है जिसके द्वारा चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाता है। अघ्र्य से मतलब चंद्रमा को जल देने से है। करवा चौथ की पूजा के दौरान करवा आवश्यक पूजन सामग्री में आता है। जिसे पूजा के बाद किसी ब्राह्मण या योग्य महिला को दान स्वरूप भेंट कर दिया जाता है। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पति की आयु लंबी होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सुहागिन महिलाओं के अलावा कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को रखती है। कहते हैं कि अगर पूरे विधि-विधान से इस व्रत को रखा जाए तो मनवांछित जीवन साथी मिलता है। करवा चौथ के दिन महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद को अघ्र्य देने के बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना उपवास तोड़ती हैं।
यह भी है नियम
निर्जला रहने के अलावा भी करवा चौथ के व्रत के कई नियम हैं। वैसे तो किसी भी व्रत के कुछ आधारभूत नियम होते हैं जैसे कि क्रोध न करना, किसी की बुराई न करना, मुख से अपशब्द न निकालना आदि। ठीक इसी तरह करवा चौथ के व्रत के दिन भी यह नियम लागू होता है। अगर आप व्रत कर रही हैं तो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखें। कहते हैं कि अगर इस दिन क्रोध किया जाए तो व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है। व्रत की शुरुआत सरगी खाकर करें। सरगी सूर्योदय से पहले खानी चाहिए। जिस वक्त आप सरगी खाएं उस वक्त दक्षिण पूर्व दिशा की ओर मुख कर के ही बैठें। करवा चौथ पर दिन भर निर्जला व्रत रखा जाता है। यानी कि अन्न के अलावा पानी पीने की भी मनाही होती है। सुहागिन महिलाएं चांद को अध्र्य देने के बाद पति के हाथों पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं। कुंवारी लड़कियां तारों के दर्शन करने के बाद पानी पी सकती हैं। वैसे तो गर्भवती और बीमार महिलाओं को करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए, लेकिन गर्भवती महिलाएं फल और पानी पीकर भी यह व्रत कर सकती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन सुहाग के रंग जैसे कि लाल, पीले और हरे रंग की साड़ी, सलवार सूट और लहंगे का सर्वाधिक चलन है। इस दिन काले और सफेद कपड़े पहनने से बचना चाहिए। करवा चौथ के व्रत के दिन चांद को अघ्र्य देना बेहद जरूरी और शुभ माना गया है। इस दिन महिलाएं सबसे पहले छलनी पर दीपक रखती हैं। इसके बाद छलनी से पहले चांद को, फिर पति को देखती हैं। इसके बाद चांद को अध्र्य दिया जाता है। आखिर में महिलाएं पति के हाथ से पानी पीकर और मिठाई खाकर अपना व्रत खोलती हैं। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं और फिर पति के साथ बैठकर भोजन करें। यह पति-पत्नी दोनों के लिए जरूरी है कि वे सिर्फ करवा चौथ के दिन ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे का सम्मान करें ताकि उनका रिश्ता हमेश प्यार की डोर से बंधा रहे।
महत्वपूर्ण है चांद का दीदार
भारत में हिंदू धर्मग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रादि के अनुसार हर महीने कोई न कोई उपवास, कोई न कोई पर्व, त्यौहार या संस्कार आदि आता ही है लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। दरअसल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूमधाम से इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है। करवाचौथ व्रत के दिन एक तरफ जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी तरफ दिन ढलते ही विवाहिताओं की नजऱें चांद के दीदार के लिए बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। दरअसल सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दीदार कर अपने चांद के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत खोला जाता है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। माना जाता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिए इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अतवा व्रतादि नहीं है। प्यार और आस्था का पर्व करवा चौथ इस साल 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। महिलाएं इस खास दिन पूरे सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। इस व्रत में श्रृंगार का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि इस दिन महिलाओं को सोलह श्रृंगार करके ही पूजा में शामिल होना चाहिए। इनमें मेंहदी, चूडिय़ां, मांग टीका के अलावा और भी चीजों को सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया है। जानते हैं महिलाओं के सोलह श्रृंगार में कौन-कौन से श्रृंगार शामिल हैं।
सिंदूर : माथे पर सिंदूर पति की लंबी उम्र की निशानी माना जाता है।
मंगलसूत्र : ये भी सुहागन होने का सूचक है।
मांग टीका : मांग टीका वैसे तो आभूषण है लेकिन इसे भी सोलह श्रंगार में शामिल किया गया है।
बिंदिया : माथे पर लगी बिंदिया भी सुहागन के सोलह श्रृंगार में शामिल है।
काजल : काजल काली नजरों से बचाने के लिए लगाया जाता है।
नथनी : नाक में पहनी जाने वाली नथनी भी सोलह श्रृंगार में शामिल है।
कर्णफूल : ईयर रिंग भी सोलह श्रृंगार में गिने जाते हैं।
मेंहदी : करवा चौथ पर हाथों में मेहंदी जरूर लगानी चाहिए।
कंगन या चूड़ी : हाथों में लाल और हरी चूडिय़ां भी सोलह श्रृंगार में शामिल हैं।
वस्त्र : लाल रंग के वस्त्र भी 16वें सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार में गिने जाते हैं।
बिछिया : दोनों पांवों की बीच की तीन उंगलियो में सुहागन स्त्रियां बिछिया पहनती हैं।
पायल : घर की लक्ष्मी के लिए पायल को बेहद शुभ माना जाता है।
कमरबंद या तगड़ी : सुहागन के सोलह श्रृंगार में शामिल है।
अंगूठी : अंगूठी को भी सुहाग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
बाजूबंद : बाजूबंद वैसे तो आभूषण है लेकिन इसे भी सोलह में शामिल किया गया है।
गजरा : फूलों का महकता गजरा भी सोलह श्रृंगार में शामिल है।