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शरद पूर्णिमा पर देवता देंगे भरपूर धन, संपदा और यश-प्रसिद्धि का आशीर्वाद

Submitted by Shanidham

शरद पूर्णिमा मां लक्ष्मी, चंद्र देव, भगवान शिव, कुबेर और श्रीकृष्ण की आराधना करने का शुभ पर्व है। इस साल 13 अक्टूबर (रविवार) को चंद्र की शुभ्र किरणें जब आंगन में बिखरेंगी तब बरसेगी खुशियां और मिलेगा दिव्य लक्ष्मी के साथ सारे देवताओं का शुभ आशीर्वाद। शरद पूर्णिमा की रात में की गई चंद्र पूजन और आराधना से साल भर के लिए लक्ष्मी और कुबेर की कृपा प्राप्ति होती है। इसके अलावा मनोबल में वृद्धि, स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी, अस्थमा से छुटकारा, ग्रह बाधा से निवारण, घर से दरिद्रता भगाने जैसी समस्याओं का समाधान होता है।
शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी को मनाने का मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
शरद पूर्णिमा की रात कुबेर को मनाने का मंत्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।
शरद पूर्णिमा पर भगवान शिव की इस मंत्र से पूजा करें
शिवलिंग का जल स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजा यानी सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, आकडे के फूल व मिठाई का भोग लगाकर इस आसान शिव मंत्र का ध्यान कर जीवन में शुभ-लाभ की कामना करें। यह शिव मंत्र मृत्युभय, दरिद्रता व हानि से रक्षा करने वाला माना गया है।
पवित्ररू कराग्रैरू स्वैर्दशभिश्चैव धारयन्।
अभयं प्रसादं शक्तिं शूलं खट्वाङ्गमीश्वररू।।
दक्षैरू करैर्वामकैश्च भुजंग चाक्षसूत्रकम्।
डरुकं नीलोत्पलं बीजपूरकमुक्तमम्।।
रासलीला का खास गोपीकृष्ण मंत्र
कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था। इसमें हर गोपी के साथ एक कृष्ण नाच रहे थे। गोपियों को लगता रहा कि कान्हा बस उनके साथ ही थिरक रहे हैं। अत: इस रात गोपीकृष्ण मंत्र का पाठ करने का महत्व है।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्रीश्
शरद पूर्णिमा की रात मिलेगी चंद्र देव की कृपा
ॐ चं चंद्रमस्यै नमरू
दधिशतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
शरद पूर्णिमा का महत्व और सबसे शुभ श्रेष्ठतम मुहूर्त
शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि यह दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं। मात्र खीर बना कर सेवन करने से ही सेहत को कई फायदे मिल जाते हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से निपुण होता है और इससे निकलने वाली किरणें इस रात्रि में अमृत बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पडऩे से यह अमृत समान गुणकारी और लाभकारी हो जाती हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण महारास रचना प्रारंभ करते हैं। देवीभागवत महापुराण के अनुसार गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने आज के दिन चंद्र को महारास का संकेत दिया था। चंद्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया और उन्हीं किरणों ने भगवान कृष्ण के चेहरे को दमकती आभा से युक्त कर दिया। कृष्ण और गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देखकर चंद्रमा ने अपनी अमृत किरणों से दिव्य वर्षा आरंभ कर दी, जिसमें भीगकर गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुई और भगवान कृष्ण के अमर प्रेम की भागीदार बनीं।
शरद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त
पूर्णिमा आरंभ 13 अक्टूबर को 00.38.45 से
पूर्णिमा समाप्त 14 अक्टूबर 2019 को 02.39.58 पर
सेहत के लिए वरदान है शरद पूर्णिमा की उजास भरी रात
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।