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नवरात्रि के आखिरी दिन होती है मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

Submitted by Shanidham

नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्घ एवं पूर्ण करने वाली तथा अष्टसिद्घि नौ निधियों को प्रदान करने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्घिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना कर सिद्घियां प्राप्ति की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाने लगा है। इस रूप की साधना कर साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्घिदात्री की उपासना अनिवार्य है।
साधना विधान
सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्घिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित करें तथा सिद्घिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेकर मां का ध्यान करें। ध्यान के  बाद हाथ के  पुष्प को मां के चरणों में छोड़ दें तथा मां का एवं सिद्घिदात्री का मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के  ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप करें। मंत्र के  पूर्ण होने के बाद हवन करे तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त करें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करे और भोजन कराएं। वस्त्र पहनाएं। वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होनी चाहिए, क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी कन्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए कन्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।
धन लाभ के उपाय
मां भगवती सिद्घदात्री को हर रोज भगवती का ध्यान करते हुए पीले पुष्प  अर्पित करें। मोती चूर के लड्डूओं का भोग लगाएं ओर श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं। धन की कमी नहीं रहेगी। धन लाभ के लिए मां भगवती के मंदिर में गुलाब की सुगंधित धूपबत्ती शुक्रवार के दिन दान करें। प्रत्येक शुक्पक्ष की नवमी को 7 मुठ्ठी काले तिल पारिवारिक सदस्यों के ऊपर से 7 बार उसार कर उत्तर दिशा में फेंक दे। धन हानि नहीं होगी।
मां सिद्धिदात्री का भोग बदलेगा भाग्य
इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।
नवग्रह पीड़ा निवारण
जिस जातक की जन्म कुंडली में निजकर्त कर्मों की वजह से यदि ग्रह अनुकूल नहीं है तो यह अद्भुत ग्रह पीड़ा निवारण मंत्र है। मां सिद्घिदात्री माता का मंत्र ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, ॐ   सिद्घिदात्री दैव्ये: नम:॥ का जाप करना बहुत ही शुभ रहेगा।
महानवमीं
शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि को महानवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति को सभी देवियों की पूजा का फल मिल सकता है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा का शुभ मुहूर्त
इस साल नवमी महाअष्टमी के दिन से ही लग रही है। नवमीं के शुरू होने की तिथि 6 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 54 मिनट है। वहीं 7 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर नवमी की तिथि समाप्त हो जाएगी।
अमृत काल मुहूर्त : सुबह 10 बजकर 24 मिनट से 7 अक्टूबर 2019 को 12 बजकर 10 मिनट तक।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11 बजकर 46 मिनट से 7 अक्टूबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक।
पूजा विधि
इस दिन माता सिद्धिदात्री को नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। सर्वप्रथम कलश की पूजा व उसमें स्थपित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात माता के मंत्रों का जाप कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोग लगाना चाहिए। नवदुर्गा में सिद्धिदात्री अंतिम माता है तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई दुविधा नहीं है। ऐसी पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्तों को अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र की तरफ लगाना चाहिए। यह चक्र हमारे कपाल के मध्य में स्थित है। ऐसा करने से भक्तों को माता सिद्धिदात्री की कृपा से उनके निर्वाण चक्र में उपस्थित शक्ति स्वत: ही प्राप्त हो जाती है।
मां सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
देवी का बीज मंत्र
ऊं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:।।
मां सिद्धिदात्री की पूजा में हवन करने के लिए दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोकों का प्रयोग किया जा सकता है।
महानवमीं के दिन कन्या पूजन का महत्व
महानवमीं के दिन छोटी बच्चियों को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। नवरात्रि का यह दिन बेहद शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों पर मां अपनी कृपा बरसाती हैं