Submitted by Shanidham
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कहते है कि इसी पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। यही वजह है कि इनकी जयंती के कारण ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। वेद व्यास जी को वेदों का ज्ञान था। इसलिए उनका नाम वेदव्यास पड़ा। महाभारत जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ की रचना भी उन्होंने ही की थी। इस दिन लोग अपने गुरू की पूजा करते है और उन्हें आदर-सम्मान के साथ कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। दरअसल गुरू के लिए कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है व गुरु ही साक्षात परब्रह्म है और उन्हीं सद्गुरु को हम प्रणाम करते हैं। हिन्दू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ माना जाता है| क्योंकि गुरु ही हैं जो इस संसार रूपी भव सागर को पार करने में सहायता करते हैं| गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है| शास्त्रों में कहा गया है कि यदि ईश्वर आपको श्राप दें तो इससे गुरु आपकी रक्षा कर सकते हैं परंतु गुरु के दिए श्राप से स्वयं ईश्वर भी आपको नहीं बचा सकते हैं| इसलिए कबीर जी कहते भी हैं -
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥
हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है| गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है| भारत वर्ष में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है| प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन किया करते थे| इस दिन केवल गुरु की ही नहीं, अपितु घर में अपने से जो भी बड़ा है अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को गुरुतुल्य समझ कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है|
गुरु पूर्णिमा का महत्व
इस दिन को हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिवस भी माना जाता है| वे संस्कृत के महान विद्वान थे महाभारत जैसा महाकाव्य उन्ही की देन है। इसी के अठारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण गीता का उपदेश देते हैं। सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। वेदव्यास जी को आदिगुरु भी कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है|
गुरु पूर्णिमा के वर्षा ऋतु ही क्यों श्रेष्ठ?
भारत वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है| गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाया जाता है इसका भी एक कारण है| क्योकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है| यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है| इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं|
आपको बता दें कि पुराणों की कुल संख्या 18 है और उन सभी 18 पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। इन्होंने वेदों को विभाजित किया है, जिसके कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। वेदव्यास जी को आदिगुरु भी कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
16 जुलाई
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 01:48 बजे (16 जुलाई 2019) से
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त - 03:07 बजे (17 जुलाई 2019) तक