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चैत्र नवरात्र में घट स्‍थापना का समय/अतिश्रेष्ठ मुहूर्त

Submitted by Shanidham

नवरात्रो का आरंभ इस वर्ष 6 अप्रैल से हो रहा है। वैसे तो नवरात्र वर्ष में 4 बार आते हैं। मगर 2 नवरात्र गुप्‍त होते हैं और बाकी के 2 नवरात्र में पूरे विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है। पहला शीत ऋतु की समाप्‍ति के बाद आरंभ होता है। यह चैत्र माह के शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होता है। दूसरा शारदीय नवरात्र कहलाता है, जो कि शीत ऋतु के शुरू होने पर आता है। चैत्र नवरात्र शुरू होने में अब मात्र 4 दिन शेष हैं, ऐसे में देश भर में इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। नवरात्र के पहले दिन घट स्‍थापना अथवा कलश स्‍थापना के बाद नवरात्र का शुभारंभ किया जाता है। 

घट स्थापना का समय/अतिश्रेष्ठ मुहूर्त
6 अप्रैल 2019 को चैत्र नवरात्र प्रारंभ हो रहा है। इस वर्ष शुक्रवार 5 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 36 मिनट से ही प्रतिपदा लग जाएगी जो कि 6 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। नवरात्र का शुभारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष  प्रतिपदा 6 अप्रैल के दिन सूर्योदय के उपरांत होगा। घट स्थापना 6 अप्रैल आश्विन मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा शनिवार को अभिजीत मुहुर्त में होगा क्योंकि इस दिन रात्रि 9 बजकर 35 मिनट तक वैघृति योग है। शास्त्रों के अनुसार वैघृति योग में कलश स्थापना को शुभ नहीं माना गया है। लेकिन जब पूरे दिन ही वैधृति योग हो तो इस स्थिति में पूर्वार्ध भाग को छोड़कर कलश स्थापित कर सकते हैं। अत: रात्रि 9 बजकर 35 मिनट के बाद कलश स्थापित कर सकते हैं लेकिन अच्छा होगा कि अभिजीत मुहुर्त में ही कलश स्थापित करें।
घट स्थापना का अतिश्रेष्ठ मुहूर्त
 दोपहर 12 बजकर 6 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक 
प्रात: 8 बजकर 01 मिनट से प्रात: 9 बजकर 35 मिनट तक शुभ का चौघडिय़ा
दोपहर 2 बजकर 14 मिनट से दोपहर 3 बजकर 47 मिनट तक लाभ का चौघडिय़ा
दोपहर 3 बजकर 47 मिनट से शाम 5 बजकर 20 मिनट तक अमृत का चौघडिय़ा
-कलश स्‍थापना की विधि
कलश स्‍थापना के जिए प्रतिपदा के दिन शुभ मुहूर्त से पहले उठकर प्रात: स्‍नान कर लें। एक रात पहले ही पूजा की सारी सामग्री एकत्र करके सोएं। स्‍नान के पश्‍चात आसन पर लाल रंग का एक वस्‍त्र बिछा लें। वस्‍त्र पर श्रीगणेश जी का स्‍मरण करते हुए थोड़े से चावल रखें। अब मिट्टी की बेदी बनाकर उस जौ बो दें और फिर उस पर जल से भरा मिट्टी या तांबे का कलश स्‍थापित करें। कलश पर रोली से स्‍वास्तिक या फिर ऊं बनाएं। कलश के मुख पर रक्षा सूत्र भी बांधा जाना चाहिए। कलश में कभी खाल जल नहीं साथ में सुपारी और सिक्‍का भी डालना चाहिए।

ऐसे करें कलश की पूजा 
कलश के मुख को ढक्‍कन से ढककर इसे चावल से भर देना चाहिए। अब एक नारियल लेकर उस माता की चुनरी लपेटें और उसे रक्षासूत्र से बांध दें। इस नारियल को कलश के ढक्‍कन के ऊपर खड़ा करके रख दें। सभी देवी-देवताओं का ध्‍यान करते हुए अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करें। पूजा
के उपरांत फूल और मिठाइयां चढ़ाकर भोग लगाएं। कलश की पूजा के बाद दुर्गा सप्‍तशती का पाठ भी करना अनिवार्य है।