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सनातन धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

Submitted by Shanidham

सनातन धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान माना है। पूरे एक वर्ष में चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी भी कहते है इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। क्योंकि महर्षि वेदव्यास के अनुसार भीमसेन ने इसे धारण किया था। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से ही साल में आने वाली समस्त एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है। इस व्रत में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना का विधान है। इस व्रत से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी व्रत और पूजा विधि
जो श्रद्धालु वर्षभर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:
1. यह व्रत मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है। व्रत से जल की वास्तविक अहमियत का भी पता चलता है। इस उपवास में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक पानी भी नहीं पिया जाता है। निर्जल यानी बिना पानी का ये व्रत निर्जला एकादशी कहलाता है।
2. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है। उपवास रखने से ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ती है।
3. साधक रात जागकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निर्जला एकादशी की रात को सोना वर्जित होता है, क्योंकि इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भक्त इस दिन 'ओम नमोः भगवते वासुदेवाय' के मंत्र का जाप करते हैं। इस दिन गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके व्रत कथा अवश्य सुनना चाहिए। 
4. ब्राह्मणों को कपड़े, छाता, दूध, फल, तुलसी पत्तियां आदि दान करना शुभ माना जाता है।
5. चावल खाना इस दिन सख्त मना होता है। व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना निषेध है परंतु इस दिन मीठे जल का वितरण करना सर्वाधिक पुण्यकारी है।
इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्त्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।
निर्जला एकादशी पर दान का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत कथा
महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- ‘’हे परम आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूख नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है।’’ भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- ‘’पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।’’