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499 साल के बाद बना दुर्लभ संयोग, गुरु-शनि की कृपा पाने के लिए इस शुभ मुहूर्त में करें होलिका दहन

Submitted by Shanidham

आज 3 राजयोगों में होगा होलिका दहन, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति में समृद्धि और उन्नति का संकेत
Holi Dahan 2020: होली के खास मौके पर इस बार ग्रह-नक्षत्रों का बेहद खास संयोग बन रहा है। ऐसा संयोग 499 साल बाद बना है। भारतीय वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार फाल्गुन पूर्णिमा सोमवार को है। ज्योतिषियो के अनुसार इस दौरान गुरु बृहस्पति और शनि अपनी-अपनी राशियों में रहेंगे। जिसे सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है।
देवगुरु धनु राशि में और शनि मकर राशि में रहेंगे। इससे पहले ग्रहों का यह संयोग 3 मार्च 1521 में बना था। एक ओर गुरु बृहस्पति जहां जहां ज्ञान, संतान, गुरु, धन-संपत्ती के प्रतिनिधि हैं तो वहीं शनि न्याय के देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार, शनि का फल व्यक्ति के उसके कर्मों के अनुसार मिलता है। यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो उसे शनि अच्छे फल और बुरे कार्य करता है तो शनि उसे विभिन्न रूप में दंडित करता है। होली पर इन दोनों ग्रह की शुभ स्थिति किसी शुभ योग से कम नहीं है।
ग्रह नक्षत्रों से बन रहे शुभ योग
इस बार पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में होली मनेगी। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र सुख-सुविधा और समृद्धि आदि का कारक है। ये ग्रह उत्सव, हर्ष, आमोद-प्रमोद और ऐश्वर्य का भी कारक है। इससे सालभर शुक्र की कृपा मिलेगी।
आज सोमवार व पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र होने से ध्वज योग बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार ध्वज योग से यश-कीर्ति और विजय मिलती है। वहीं, सोमवार को चंद्रमा का दिन माना जाता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि होने से आज चंद्रमा का प्रभाव ज्यादा रहेगा। इसके साथ ही स्वराशि स्थित बृहस्पति की दृष्टि चंद्रमा पर होने से गजकेसरी योग का प्रभाव रहेगा।
आज सूर्य और बुध एक ही राशि में होकर बुधादित्य योग बना रहे हैं। गुरु और शनि भी अपनी-अपनी राशि में हैं। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की इस विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी। इसके साथ ही धुलेंडी पर 10 मार्च को त्रिपुष्कर योग बनेगा।
पूजन मुहूर्त-
भद्रा अवधि में शुभ योग 
सुबह 10.16 से 10.31 बजे तक
भद्रा पश्चात लाभामृत योग- 
दोपहर 1.13 से शाम 6.00 बजे तक।
दहन मुहूर्त-
कुल अवधि: शाम 6.22 से रात 11.18 बजे तक।
शुभ मुहूर्त: शाम 6.22 से रात 8.52 बजे तक।
प्रदोष काल विशेष मंगल मंगल मुहूर्त: शाम 6.22 से शाम 7.10 बजे तक।
होलिका पूजन मंत्र-
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम। 
होलिका पर भद्रा नहीं -
इस बार होली दहन के दौरान भद्रा नहीं रहेगी। होली वाले दिन दोपहर 1 बजकर 10 मिनट तक भद्रा उपस्थित रहेगी। दोपहर 1:10 पर भद्रा समाप्त होने के बाद होली पूजन श्रेष्ठ होगा। 
भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं। शनिदेव की तरह उसका स्वभाव भी उग्र है। ब्रह्मा जी ने कालखंड की गणना और पंचांग में भद्रा को विष्टिकरण में रखा है। क्रूर स्वभाव के कारण ही भद्राकाल में शुभकार्य निषेध हैं। केवल तांत्रिक, न्यायिक और राजनीतिक कर्म ही हो सकते हैं। होली पांच बड़े पर्व में एक है। यह पर्व भी असुरता पर विजय का पर्व है। इस कारण भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है।
होली का महत्व (Holi Ka Mahatva)
होली का त्योहार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी के दिन मनाया जाता है। होली का त्योहार भी बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन रंग खेले जाते हैं। जिसे रंगावली या घुलंडी के नाम से भी जाना जाता है। लोग होलिका की अग्नि में अपने अहंकार, बुराईयों आदि सबको जला देते हैं और रंग लगाकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं। होला का त्योहार बड़े ही हर्ष के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। वह भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्वाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी। लेकिन प्रह्वाद को कुछ भी नही हुआ और स्वंय होलिका ही उस अग्नि में भस्म हो गई।
राजयोग में होलिका दहन का शुभ फल
होलिका दहन पर बुध और चंद्रमा से शंख योग बन रहा है। इस राजयोग के प्रभाव से देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। देश की प्रगति और आर्थिक स्थिति में भी सुधार होने की संभावना है। वहीं, शनि के प्रभाव से हर्ष नाम का राजयोग बन रहा है। इसके प्रभाव से देश की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। दुश्मनों पर विजय मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताकतवर देशों में भारत की गिनती होगी। वहीं, स्वराशि स्थित बृहस्पति से बन रहे हंस योग से देश में धार्मिक भेदभाव की स्थिति खत्म होगी।