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आज शनि प्रदोष पर शिव और शनि पूजा का संयोग

Submitted by Shanidham

साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष 9 नवंबर को
भगवान शिव के प्रिय व्रतों में से एक है प्रदोष व्रत। इस व्रत से वे सबसे जल्दी प्रसन्न होते हैं और व्रती द्वारा चाही गई इच्छा पूरी करते हैं। यदि आप जीवन में कुछ विशेष पाना चाहते हैं, अपने किसी बड़े संकल्प की पूर्ति करना चाहते हैं तो आपको प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत प्रत्येक माह में दो बार त्रयोदशी तिथि के दिन आता है, लेकिन जब प्रदोष व्रत सोमवार और शनिवार को आता है तो यह विशेष फलदायक माना जाता है। शनि प्रदोष का यह शुभ संयोग 9 नवंबर 2019 को बन रहा है। कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी 9 नवंबर शनिवार को आने से शनि प्रदोष का संयोग बना है। प्रदोष के दिन शनिवार का संयोग इस दिन को बहुत खास बना रहा है। इस दिन प्रदोष व्रत करने से न केवल शिव की कृपा प्राप्त होगी, बल्कि शनिदेव को भी प्रसन्न किया जा सकता है। यदि किसी जातक पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है या कुंडली में शनि खराब स्थिति में होकर नेष्टकारक है तो उन्हें भी शनिप्रदोष का यह व्रत जरूर करना चाहिए। शनि प्रदोष के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर विधि विधान से भगवान शिव समेत उनके पूरे परिवार मां पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की पूजा करें। भगवान शिव को पंचामृत आदि से स्नान कराकर बेलपत्र, धतूरा, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी व लौंग आदि अर्पित करें। इसके बाद अपनी समस्त समस्याओं के निवारण के लिए प्रदोष व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन निराहार रहते हुए संयम का पालन करते हुए व्रत करें। संध्याकाल में जब प्रदोषकाल हो तब भगवान शिव का अभिषेक करें और शनि चालीसा, शनिस्तवराज, शिव चालीसा, शिव महिम्नस्तोत्र का पाठ करें। प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। प्रदोषकाल सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पूर्व का रहता है। यानी सायं 5.30 से 7 बजे के बीच प्रदोष व्रत की पूजा कर लेनी चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत के लाभ
शनि प्रदोष का व्रत रखने से शिव और शनि दोनों की कृपा प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत से कुंडली में बुरा प्रभाव दे रहा चंद्र ठीक होता है। इससे मानसिक सुख-शांति प्राप्त होती है। शिव की पूजा से पारिवारिक और सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। आयु और आरोग्य प्राप्त होती है। रोगों से मुक्ति मिलती है। शारीरिक बल में वृद्धि होती है। पूरे वर्ष के प्रदोष व्रत करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं। भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। शनि प्रदोष व्रत से जन्मकुंडली में बुरे प्रभाव दे रहे शनि की शांति होती है। शनि की साढ़ेसाती, ढैया, शनि की महादशा-अंतर्दशा आदि में हो रही परेशानियां दूर होती हैं। वाहन दुर्घटना, बीमारी आदि में जातक की रक्षा होती है। शनि प्रदोष व्रत करने से कभी पैसों की तंगी नहीं होती है। अविवाहित युवक-युवतियों के विवाह की बाधा दूर होती है। दांपत्य जीवन में आ रही परेशानियों, मनमुटाव से मुक्ति मिलती है। 9 नवंबर को सायं 5.42 से रात्रि 8.21 बजे तक प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारंभ हो जाता है। जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है उसी दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारंभ हो जाता है। जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ-साथ होते हैं (जिसे त्रयोदशी और प्रदोष का अधिव्यापन भी कहते हैं) वह समय शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय शिवजी प्रसन्नचित मनोदशा में होते हैं। इसलिए प्रदोष पूजा 9 नवंबर को ही की जाएगी, क्योंकि इसी दिन सायंकाल के समय त्रयोदशी तिथि रहेगी। 10 नवंबर को त्रयोदशी तिथि रहेगी, लेकिन प्रदोषकाल में चतुर्दशी तिथि लग जाने से प्रदोष पूजा नहीं हो सकेगी।
अशुभ प्रभाव से बचने के लिए किया जाता है शनि प्रदोष व्रत
9 नवंबर को कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी और शनिवार यानी शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। प्रदोष पर्व पर पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को भगवान शिव की पूजा की जाती है। शनिवार को शिव पर्व होने से दिन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस शुभ योग में भगवान शिव और शनि की पूजा एवं व्रत करने से हर इच्छा पूरी होती है। हर तरह के पाप भी खत्म हो जाते हैं। ये साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष है। इसके बाद अब मार्च 2020 में ऐसा संयोग बनेगा। 2020 में 5 बार शनि प्रदोष का योग बनेगा।
प्रदोष व्रत और पूजा की विधि
व्रती यानी व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात:काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में फिर से स्नान करके सफेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। शाम को शिव पूजा के बाद पानी पी सकते हैं।
शनि प्रदोष है खास
शनिदेव के गुरू भगवान शिव हैं। इसलिए शनि संबंधी दोष दूर करने और शनिदेव की शांति के लिए शनि प्रदोष का व्रत किया जाता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। इस व्रत से शनि का प्रकोप, शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव कम हो जाता है। शनिवार को पडऩे वाला प्रदोष संपूर्ण धन-धान्य, समस्त दुखों से छुटकारा देने वाला होता है। इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करने पर जीवन में शनि से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। इसके अलावा शनि चालीसा और शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए।
प्रदोष व्रत का महत्व
संध्या का वह समय जब सूर्य अस्त होता है और रात्रि का आगमन होता हो उस समय को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में शिव जी साक्षात शिवलिंग में प्रकट होते हैं और इसीलिए इस समय शिव का स्मरण करके उनका पूजन किया जाए तो उत्तम फल मिलता है। प्रदोष व्रत करने से चंद्रमा के अशुभ असर और दोषों से छुटकारा मिलता है। यानी शरीर के चंद्र तत्व में सुधार होता है। चंद्रमा मन का स्वामी है, इसलिए चंद्रमा संबंधी दोष दूर होने से मानसिक शांति और प्रसन्नता मिलती है। शरीर का ज्यादातर हिस्सा जल है इसलिए चंद्रमा के प्रभाव से शारीरिक स्वस्थता मिलती है। शनि प्रदोष पर प्रात:काल में भगवान शिवशंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, इसके बाद शनिदेव का पूजन करना चाहिए।